देश के नए मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) के रूप में ज्ञानेश कुमार की नियुक्ति के एक दिन बाद ही सुप्रीम कोर्ट आज इस पर सुनवाई करने जा रहा है। अदालत में संसद द्वारा पारित नए कानून की वैधता को चुनौती दी गई है, जिसमें भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) को चयन पैनल से हटाकर एक कैबिनेट मंत्री को शामिल किया गया है।
क्या है मामला?
वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन के सिंह की पीठ के सामने इस मामले को जल्दी सुनवाई के लिए प्राथमिकता देने का अनुरोध किया। उन्होंने कहा:
“यह मामला हमारे लोकतंत्र के भविष्य के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। सरकार ने इस नए कानून का इस्तेमाल कर संविधान पीठ के फैसले (अनूप बरनवाल केस) का उल्लंघन किया है और CEC की नियुक्ति को मज़ाक बना दिया है।”
सुप्रीम कोर्ट का रुख क्या है?
जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि यह एक महत्वपूर्ण मामला है और कोर्ट इसे आउट ऑफ टर्न सुन सकता है।
हालांकि, उन्होंने इसे लिस्ट में पहले स्थान पर लाने के लिए रजिस्ट्री को निर्देश देने से इनकार कर दिया।
प्रशांत भूषण ने दलील दी कि मामला आइटम 41 के रूप में सूचीबद्ध है और इसे तुरंत सुना जाना चाहिए।
टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा भी पहुंचीं सुप्रीम कोर्ट
तृणमूल कांग्रेस (TMC) सांसद महुआ मोइत्रा ने भी CEC और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए स्वतंत्र प्रक्रिया की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। उन्होंने ट्वीट कर कहा:
“मैंने CEC-EC चयन के लिए सरकारी नियंत्रण वाले पैनल को अलग रखने की मांग वाली याचिका का समर्थन किया है। साथ ही स्वतंत्र चयन प्रक्रिया सुनिश्चित करने के लिए सुझाव भी दिया है। यह मामला आज सूचीबद्ध है।”
क्या हो सकता है असर?
यदि सुप्रीम कोर्ट सरकार के नए कानून को असंवैधानिक करार देता है, तो CEC और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति प्रक्रिया में बड़ा बदलाव आ सकता है। इससे चुनाव आयोग की स्वतंत्रता को लेकर सरकार पर दबाव भी बढ़ सकता है। अब देखना यह होगा कि सुप्रीम कोर्ट क्या फैसला सुनाता है और क्या यह मामला देश की चुनावी प्रक्रिया को प्रभावित करेगा।
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