बीएसपी के भीतर सियासी हलचल तेज हो गई है। मायावती के भतीजे ईशान आनंद की एंट्री से पार्टी में नई उम्मीदें जगी हैं, जबकि बड़े भतीजे आकाश आनंद अभी तक अपनी सियासी छाप नहीं छोड़ पाए हैं। गुरुवार को बीएसपी की एक मीटिंग में ईशान को पहली पंक्ति में बैठते हुए देखा गया, जिससे यह सवाल खड़ा हो गया है कि क्या मायावती अब ईशान पर बड़ा दांव खेलने की तैयारी कर रही हैं।
बीएसपी में मायावती के प्रयोग
मायावती, जो बीएसपी के गिरते जनाधार को फिर से मजबूत करने की कोशिशों में जुटी हैं, अपने परिवार के सदस्यों को राजनीति में शामिल कर रही हैं। पहले भाई आनंद कुमार और फिर भतीजे आकाश आनंद की एंट्री हुई, लेकिन दोनों अब तक पार्टी को नई ऊंचाइयों तक ले जाने में नाकाम रहे हैं।
अब मायावती के भाई आनंद कुमार के छोटे बेटे ईशान आनंद की सियासी एंट्री ने अटकलों को हवा दे दी है। ईशान पिछले दो दिनों से लगातार बीएसपी ऑफिस में नजर आ रहे हैं।
ईशान आनंद पर क्यों टिकीं उम्मीदें?
ईशान ने लंदन के वेस्टमिंस्टर कॉलेज से लीगल स्टडी की पढ़ाई की है और फिलहाल अपने पिता का बिजनेस संभाल रहे हैं। ईशान, आकाश से तीन साल छोटे हैं और सियासत में नए चेहरे के रूप में देखे जा रहे हैं।
आकाश आनंद क्यों नहीं चल पाए?
आकाश आनंद की सक्रिय राजनीति में एंट्री 2017 में हुई थी। 2023 में उन्हें बीएसपी का उत्तराधिकारी घोषित किया गया। लेकिन वे पार्टी को सियासी मजबूती देने में नाकाम रहे।
राजस्थान चुनाव: 2018 में बीएसपी को 6 सीटें मिली थीं, जो 2023 में घटकर सिर्फ 1 हो गई।
मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़: 2023 के चुनावों में बीएसपी खाता तक नहीं खोल पाई।
तेलंगाना: यहां भी आकाश की रणनीति काम नहीं कर पाई।
उत्तर प्रदेश और हरियाणा उपचुनाव: आकाश इन चुनावों में भी पार्टी को कोई खास फायदा नहीं दिला सके।
चंद्रशेखर की बढ़ती चुनौती
मायावती के लिए चंद्रशेखर की आजाद समाज पार्टी लगातार सिरदर्द बनती जा रही है। वकालत की पढ़ाई के बाद राजनीति में आए चंद्रशेखर दलितों के बीच अपनी पकड़ मजबूत कर रहे हैं।
2024 के चुनाव में चंद्रशेखर ने नगीना सीट से जीत हासिल की।
उनकी नजर अब दलित बहुल सीटों पर है, जिससे मायावती का जनाधार घटता जा रहा है।
बीएसपी का घटता वोटबैंक
2024 के चुनावों में बीएसपी को यूपी में सिर्फ 9% वोट मिले। पार्टी का जनाधार अब जाटव समुदाय तक सिमटकर रह गया है।
क्या ईशान आनंद बदल पाएंगे बीएसपी का भविष्य?
गिरते वोटबैंक और बढ़ती चुनौतियों के बीच ईशान आनंद को बीएसपी की नई उम्मीद के रूप में देखा जा रहा है। हालांकि, यह देखना दिलचस्प होगा कि मायावती ईशान को पार्टी में क्या भूमिका देती हैं और वे पार्टी को किस हद तक मजबूत कर पाते हैं।
क्या ईशान आनंद बीएसपी के लिए गेमचेंजर साबित होंगे, या यह एक और सियासी प्रयोग बनकर रह जाएगा? यह तो आने वाला समय ही बताएगा।
यह भी पढ़ें:
सर्दियों में बच्चों की खांसी को न करें नजरअंदाज, हो सकती हैं ये गंभीर बीमारियां