बंदरगाह, पोत परिवहन एवं जलमार्ग मंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने कहा है कि ग्रेट निकोबार द्वीप पर प्रस्तावित 41,000 करोड़ रुपये की अंतरराष्ट्रीय ट्रांसशिपमेंट बंदरगाह परियोजना के लिए सभी जरूरी मंजूरियां हासिल कर ली गई हैं।
इसके साथ ही सोनोवाल ने संवाददाताओं से बातचीत में कहा कि इस विशाल परियोजना का विरोध ‘निहित स्वार्थ’ की उपज है।
ग्रेट निकोबार ट्रांसशिपमेंट बंदरगाह की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) को सरकार अंतिम रूप देने में जुटी है। अगले कुछ महीनों में परियोजना के कार्यान्वयन की दिशा में आगे बढ़ने की संभावना है।
सोनोवाल ने कहा, ‘‘हमारा उद्देश्य भारत को एक विकसित राष्ट्र बनाना है। इस परियोजना का विरोध करने वाले लोग निहित स्वार्थ के कारण ऐसा कर रहे हैं।’’
दरअसल, बंगाल की खाड़ी में ग्रेट निकोबार द्वीप पर प्रस्तावित यह परियोजना पर्यावरण संबंधी चिंताओं को लेकर जांच के दायरे में है।
केंद्रीय मंत्री ने इस संदर्भ में कहा, ‘‘सरकार ने परियोजना के लिए सभी जरूरी मंजूरियां हासिल कर ली हैं। पांच-छह कंपनियों ने अंतरराष्ट्रीय ट्रांसशिपमेंट बंदरगाह परियोजना में अपनी दिलचस्पी भी दिखाई है।’’
परियोजना को लेकर रुचि पत्र दाखिल करने वाली कंपनियों में लार्सन एंड टुब्रो, एफकॉन्स इन्फ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड और जेएसडब्ल्यू इन्फ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड शामिल हैं।
पिछले महीने कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव से अनुरोध किया था कि ग्रेट निकोबार द्वीप में प्रस्तावित इस विशाल परियोजना को दी गई सभी मंजूरियां निलंबित कर दी जाएं। उन्होंने संबंधित संसदीय समितियों को इस परियोजना की गहन और निष्पक्ष समीक्षा सौंपने का अनुरोध भी किया था।
अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में प्रस्तावित इस बंदरगाह में सालाना 1.6 करोड़ कंटेनर को संभालने की क्षमता होगी। परियोजना का पहला चरण 2028 तक 18,000 करोड़ रुपये की लागत से चालू किया जाएगा।
बंदरगाह के आसपास एक हवाई अड्डा, एक टाउनशिप और एक बिजली संयंत्र लगाने का भी प्रस्ताव इस परियोजना में किया गया है। यह परियोजना अंतरराष्ट्रीय व्यापार मार्ग पर स्थित है, जिसके निकट सिंगापुर और कोलंबो जैसे टर्मिनल हैं।
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