उच्चतम न्यायालय ने पश्चिम बंगाल सरकार से कोलकता के आर जी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में सुरक्षा की समुचित व्यवस्था सुनिश्चित करने के निर्देश के साथ ही आंदोलनकारी डॉक्टरों से मंगलवार शाम पांच बजे तक अपने-अपने काम पर लौटने का सोमवार को निर्देश दिया।
मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने नौ अगस्त को उस कॉलेज की 31 वर्षीया एक स्नातकोत्तर प्रशिक्षु डॉक्टर के साथ कथित दुष्कर्म और हत्या के मामले में जांच प्रगति विवरण और अन्य पहलुओं पर विचार करने के बाद यह आदेश पारित किया।
पीठ ने कथित दुष्कर्म और हत्या के खिलाफ एक माह से लगातार हड़ताल, धरना, प्रदर्शन कर रहे पश्चिम बंगाल के डॉक्टरों को चेतावनी देते हुए कहा कि वे कल शाम 5 बजे तक अपनी-अपनी ड्यूटी पर लौट आएं, नहीं तो राज्य सरकार उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू कर सकती है। शीर्ष अदालत ने कहा कि डॉक्टरों का विरोध उनकी ड्यूटी की कीमत पर नहीं हो सकता।
मुख्य न्यायाधीश ने कहा, “हमने दो दिन का समय दिया है। युवा डॉक्टरों को अब अपने अपने काम पर वापस लौटना चाहिए। हम जानते हैं कि जमीनी स्तर पर क्या हो रहा है। पहले काम पर लौटें। जिला कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक सुरक्षा सुनिश्चित करेंगे। आपको अब काम पर लौटना होगा। यदि आप काम पर नहीं आते हैं, तो आपके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई के लिए किसी को जिम्मेदार न ठहराएँ। आप यह नहीं कह सकते कि वरिष्ठ डॉक्टर काम कर रहे हैं, इसलिए हम भी नहीं करेंगे।”
पीठ ने इस चेतावनी के साथ ही हड़ताली डॉक्टरों को यह भी आश्वासन दिया कि अगर वे 10 सितंबर की शाम 5 बजे या उससे पहले ड्यूटी पर रिपोर्ट करते हैं, तो उनके खिलाफ कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई नहीं की जाएगी।
शीर्ष अदालत के समक्ष सुनवाई के दौरान पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने पीठ को बताया कि पूरे राज्य में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए हैं। उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा कि प्रदर्शनकारी हिंसा कर रहे हैं। राज्य सरकार से पूर्व अनुमति लिए बिना ही विरोध प्रदर्शन किया जा रहा है।
पीठ के समक्ष उन्होंने यह भी दावा किया कि विरोध प्रदर्शनों के कारण करीब 23 लोगों की मौत हो गई और छह लाख लोगों को उपचार नहीं मिल पाया है।
उन्होंने दलील देते हुए कहा, “23 लोगों की मौत इसलिए हुई, क्योंकि वे (डॉक्टर) काम पर नहीं थे। स्वास्थ्य सेवा प्रणाली ध्वस्त हो सकती है। छह लाख लोगों को उपचार नहीं मिल पा रहा है। रेजिडेंट डॉक्टर ओपीडी में नहीं आ रहे और 1,500 से अधिक रोगियों की एंजियोग्राफी नहीं हो पा रही है।”
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