पिछले एक दशक में देश के कुल 13 स्थलों को विश्व धरोहर सूची में किया गया शामिलः गजेन्द्र सिंह शेखावत

भारत के लिए एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक उपलब्धि में असम के मोईदाम – अहोम राजवंश की टीला-दफन प्रणाली को आधिकारिक तौर पर यूनेस्को की विश्व विरासत सूची में शामिल किया गया है। यह घोषणा शुक्रवार को नई दिल्ली में चल रहे विश्व धरोहर समिति के 46वें सत्र के दौरान की गई। मोईदाम यहां शामिल होने वाली भारत की 43वीं संपत्ति बन गई है।

इस मौके पर आयोजित प्रेसवार्ता में केंद्रीय संस्कृति और पर्यटन मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत ने कहा कि आज भारत के लिए अत्यंत गौरव का क्षण है कि असम के मोईदाम को 43वें यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के रूप में अंकित किया गया है। पिछले एक दशक में भारत के कुल 13 स्थलों को विश्व धरोहर की सूची में शामिल किया गया है।

गजेन्द्र सिंह शेखावत ने बताया कि यह ऐतिहासिक मान्यता असम और भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को उजागर करते हुए, चराईदेव में अहोम राजाओं की अद्वितीय 700 साल पुरानी टीले वाली दफन प्रणाली की ओर वैश्विक ध्यान आकर्षित करती है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में मोईदाम को 2023 में भारत की आधिकारिक प्रविष्टि के रूप में नामांकित किया गया था। यह नामांकन मोईदाम के सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व को रेखांकित करता है, जो पूर्वोत्तर राज्य की पहली सांस्कृतिक विरासत बन गयी है।

उन्होंने कहा कि चराइदेव में मोईदाम, जिसे अक्सर ‘भारत के पिरामिड’ के रूप में जाना जाता है, भव्य, मिट्टी के टीलों की एक श्रृंखला है जो अहोम राजघराने के लिए कब्रिस्तान के रूप में काम करते हैं। यह संरचनाएं 13वीं शताब्दी की हैं और ताई-अहोम लोगों की जटिल अंत्येष्टि प्रथाओं और ब्रह्माण्ड संबंधी मान्यताओं को प्रदर्शित करती हैं। मोईदाम की विशेषता उनके अर्धगोलाकार आकार, ईंट की संरचनाएं और धनुषाकार प्रवेश द्वारों वाली अष्टकोणीय सीमा दीवारें हैं। तहखानों में राजघरानों के अवशेषों के साथ-साथ कब्र के सामान भी हैं, जो समाज में उनके कद और श्रद्धा का प्रतीक हैं।

उन्होंने कहा कि यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में मोईदाम को शामिल किया जाना उनके उत्कृष्ट सार्वभौमिक मूल्य का प्रमाण है। स्मारकों और स्थलों पर अंतरराष्ट्रीय परिषद (आईसीओएमओएस) ने सांस्कृतिक परंपरा के लिए मोईदाम की असाधारण गवाही और मानव इतिहास में महत्वपूर्ण चरणों के उनके प्रतिनिधित्व पर प्रकाश डाला। यह मान्यता इन ऐतिहासिक खजानों को संरक्षित करने में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) और असम सरकार के प्रयासों को रेखांकित करती है।

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