उत्तर प्रदेश में भाजपा के खराब प्रदर्शन के बाद पार्टी के भीतर अंदरूनी कलह तेज हो गई है। अहम सवाल यह है कि खराब नतीजों के लिए कौन जिम्मेदार होगा? सूत्रों से पता चला है कि उत्तर प्रदेश में भाजपा के हारे हुए सांसदों के खराब प्रदर्शन पर एक आंतरिक रिपोर्ट तैयार की जा रही है। बताया जा रहा है कि जिला स्तर पर मिले फीडबैक से पता चला है कि जिन सांसदों के खिलाफ पार्टी ने प्रतिकूल जनमत के कारण टिकट बदलने की सिफारिश की थी, उनमें से अधिकांश हार गए।
सर्वे रिपोर्ट की अनदेखी
सूत्रों के अनुसार, सांसदों की लोकप्रियता और जीतने की संभावना के आधार पर पार्टी द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण से पता चला है कि तीन दर्जन से अधिक सांसदों के जीतने की संभावना नहीं है। इसमें कई केंद्रीय मंत्री भी शामिल थे। इसके बावजूद इन सांसदों को फिर से टिकट दिया गया। उत्तर प्रदेश में भाजपा की हार का मुख्य कारण पार्टी के वरिष्ठ नेताओं का अति आत्मविश्वास है, जिन्होंने टिकट बांटते समय स्थानीय और पार्टी कैडर की राय को नजरअंदाज कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप पार्टी को काफी नुकसान हुआ।
अति आत्मविश्वास के शिकार
अपने कार्यकाल के दौरान जनता के बीच काम न करने वाले कई सांसदों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की लोकप्रियता पर पूरा भरोसा किया। नतीजतन, इन सांसदों को मतदाताओं ने नकार दिया। जिला इकाइयों, क्षेत्रीय और राज्य स्तर की रिपोर्टों ने उत्तर प्रदेश के पश्चिम से पूर्व तक फैले लगभग 40 मौजूदा सांसदों के खिलाफ नकारात्मक माहौल का संकेत दिया था। इन चेतावनियों के बावजूद, इनमें से अधिकांश सांसदों को फिर से टिकट दिया गया। हालांकि, उनकी संभावनाओं को बढ़ाने के लिए उसी जाति के मंत्रियों और राज्य संगठन के पदाधिकारियों को उन निर्वाचन क्षेत्रों में तैनात करने सहित कई प्रयास किए गए, लेकिन जनता का असंतोष बहुत अधिक रहा।
विधानसभा परिणामों का विश्लेषण
विधानसभावार आधार पर परिणामों का विश्लेषण करने पर, भाजपा केवल 156 विधानसभा क्षेत्रों में ही जीत हासिल कर पाई। 76 संसदीय क्षेत्रों में, भाजपा ने 156 सीटें खो दीं, जबकि समाजवादी पार्टी ने 188 विधानसभा सीटों पर बढ़त हासिल की। कांग्रेस ने 22 विधानसभा क्षेत्रों में जीत हासिल की।
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